उर्दू शायरी में ‘समंदर’

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप

समंदर विशाल भी है और गहरा भी। सारी दुनिया में लगभग इकहत्तर प्रतिशत हिस्से पर समंदर का एकछत्र राज है। समंदर शांत भी है और तूफ़ानी भी। समंदर जहाँ सदियों से प्यासा है, वहीं हजारों नदियों को‌ लगातार पी भी रहा है।

बहुत ही रहस्यमयी शय है यह समंदर भी। जब यह शांत होता है तो दुनिया में इससे खूबसूरत कुछ भी नहीं और जब यह नाराज़ होता है तो शायद इससे डरावना भी कुछ नहीं। न जाने कितने ही फ़साने जुड़े हैं इस समंदर से। समंदर कभी किसी लेखक के ज़ह्न से गुज़रता है तो कभी किसी पेंटर की तूलिका उसे सजाती है लेकिन यह ‘समंदर’ या ‘सागर’ जब कभी शायरों के ख़यालों से गुज़रा तो इसने तो आग ही लगा दी। उर्दू शायरी में समंदर कई तरह से और कई अंदाज में चस्पा है। जितने कोणों से समंदर को उर्दू शायरी में देखा गया और महसूस किया गया है, उतना शायद कहीं और नहीं। हर बार समंदर एक नए अंदाज़ में ही हमारे सामने उपस्थित होता है – कभी हँसता हुआ, कभी मुस्कराता हुआ, कभी चीखता हुआ और कभी अपनी विवशता पर हाथ मलता हुआ।  उर्दू शायरी के हवाले से मैंने समंदर के कुछ ऐसे ही अंदाज आपके लिए संजोये हैं। आइये, मिलते हैं समंदर से _      

 डा० बशीर बद्र का नाम उर्दू शायरी में बहुत ऊंचाई पे स्थित है। उनको अपने जीवन कल में ही किंवदंती बन जाने का हुनर हासिल है और दुनिया को सबसे ज्यादा मशहूर और मकबूल शेर देने का कीर्तिमान भी उन्हीं के नाम है। समंदर उनका भी प्रिय विषय है। वे कहते है –  

 

आंखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा।

कश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा।।”

 

और एक शेर यह भी –

 

“हम ओस के मोती हैं, कह दो ये समंदर से,

दरिया की तरह उससे, मिलने नहीं आयेंगे।”

 

उर्दू शायरी को अपने मोतबर शायर मुनव्वर राना पर नाज़ है। मुनव्वर राना ने ज़मीन से जुड़े ऐसे-ऐसे शेर कहे हैं कि ज़माना अपने दांतों तले उँगलियाँ दबाने पर मजबूर हो गया। जो भी कहा, उम्दा ही कहा, मगर जब समंदर पर कहा तो बहुत उम्दा कहा –

   

“एक नदी उसे सैराब कर चुकी है मगर,

समंदर आज भी प्यासा दिखाई देता है।“

 

 

डा० राहत इन्दौरी उर्दू शायरी के एक और बड़े और नामचीन शायर हैं। मंचों पर बहुत प्यार से सुने भी जाते हैं और अपने दीवानों के माध्यम से बड़े शौक से पढ़े भी जाते हैं। उनका अंदाज भी अलग और अदायगी भी। देखिये तो, किस अलग अंदाज में उन्होंने समंदर को याद किया है –

 

मैंने अपनी खुश्क आँखों से लहू छलका दिया,

एक समंदर कह रहा था, मुझको पानी चाहिए।“

 

और यह भी –

 

कितने ही लोग प्यास की शिद्दत से मर चुके,

मैं सोचता रहा कि समंदर कहाँ गये।“

 

और एक शेर यह भी –

 

मैं खोलता हूँ सदफ़ मोतियों के चक्कर में,

मगर यहाँ भी समन्दर निकलने लगते हैं।“

 

 

क़तील शिफ़ाई का नाम उन चुनिन्दा पाकिस्तानी शायरों में शुमार है जो अपने चाहने वालों में उसी शिद्दत से हिंदुस्तान में भी मशहूर हैं। कतील शिफ़ाई किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं। जरा उनका अंदाज देखिये-     

 

गिरते हैं समंदर में बड़े शौक से दरिये,

लेकिन किसी दरिया में समंदर नहीं गिरता।“

 

 

समंदर के बारे में एक बहुत ही खूबसूरत शेर, जिसमें शायर ने जिस खूबसूरती से समंदर की विवशता का वर्णन वैसा अन्यत्र देखने को नहीं मिलता, आपसे शेयर करने का मन है लेकिन बहुत प्रयासों के बाद भी इस शेर के अज्ञात शायर का नाम मुझे नहीं मालूम हो सका-

  

समंदर बेबसी अपनी किसी से कह नहीं सकता।

हजारों मील तक फैला है, फिर भी बह नहीं सकता।।“

 

 

असर सहबाई का यह लाजवाब शेर भी देखें –

 

इलाही कश्ती-ए-दिल बह रही है किस समंदर में,

निकल आती हैं मौजें हम जिसे साहिल समझते हैं।

 

 

भोपाल में 1920 में जन्मे शायर कैफ़ भोपाली भी एक नामचीन शायर थे जिनका निधन 1991 में हुआ। उन्होंने बहुत लिखा और समंदर पर उनका यह शेर खासा मशहूर है –

 

कैफ़ पैदा कर समंदर की तरह,

वसअतै खामोशियां गहराईयां।“

 

 

अहमद नदीम कासमी का तो अंदाज़ ही जुदा है। आइये, देखें तो कि वे समंदर के हवाले से भला क्या फ़रमाते हैं –

 

कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा।

मैं तो दरिया हूँ,  समुंदर में उतर जाऊँगा।।”

 

 

मोहम्मद अल्वी अहमदाबाद में 1927 में जन्मे हैं। समंदर पर उनका एक खूबसूरत शेर देखिये –

 

नज़रों से नापता है समुंदर की वुसअतें,

साहिल पे इक शख़्स अकेला खड़ा हुआ।“

 

 

अब्दुल अहद साज़ एक मशहूर शायर है। वे बहुत ही करीने से अपनी बात रखते हैं। समंदर पर उनका एक खूबसूरत शेर देखिये –   

 

दोस्त अहबाब से लेने न सहारे जाना।

दिल जो घबराए समुंदर के किनारे जाना।।“

 

 

मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद जैसे शायर कभी कभी ही इस धरती पर आते हैं। वे लखनऊ की शान थे। समंदर पर उनका एक शानदार शेर देखिये –

 

उन्हें ठहरे समुंदर ने डुबोया,

जिन्हें तूफ़ाँ का अंदाज़ा बहुत था।“

 

 

ज़ेब ग़ौरी का जन्म 1928 में हुआ था और उनकी मृत्यु का बाद इनके दीवान ‘ज़र-ओ-ज़रखेज़’ एवं ‘चाक’ पाकिस्तान से प्रकाशित हुए। समंदर पर उनका एक शेर आपके हवाले –

 

छेड़ कर जैसे गुज़र जाती है दोशीज़ा हवा,

देर से ख़ामोश है गहरा समुंदर और मैं।“

 

और एक और शेर यह भी –

 

चमक रहा है ख़ेमा-ए-रौशन दूर सितारे सा,

दिल की कश्ती तैर रही है खुले समुंदर में ।“

 

 

अदीम हाशमी जी का एक शेर समंदर के नाम –

 

कटी हुई है ज़मीं कोह से समुंदर तक,

मिला है घाव ये दरिया को रास्ता दे कर।“

 

 

इरफ़ान अहमद सिद्दीक़ी ‘इरफ़ान’ का जन्म बदायूं में 1939 में हुआ था तथा उनका निधन 2004 में लखनऊ में हुआ। वे एक बेहतरीन शायर थे। उनका समंदर पर एक शेर देखिये –

 

समुंदर अदा-फ़हम था रुक गया,

कि हम पाँव पानी पे धरने को थे।“

 

 

लखनऊ की सरज़मीं में पैदा नूर लखनवी की पहचान अंतर्राष्ट्रीय स्तर की थी। उनकी शायरी लखनवी अंदाज़ से सराबोर थी और खुद बोलती हुई शायरी के शायर थे। समंदर पर उनका एक बहुत ही मशहूर शेर आपकी नज़र –

 

मैं एक कतरा हूँ, मेरा अलग वजूद तो है,

हुआ करे जो समंदर मेरी तलाश में है ।”

 

प्रसिद्ध शायर राज़ इलाहाबादी का यह शेर कितनी खूबसूरती से समंदर की विवशता को दर्शाता है कि पानी से सराबोर होने पर भी समंदर अपना पानी नहीं पी सकता  –

 

एक समंदर ने आवाज़ दी,

मुझको पानी पिला दीजिये।”

 

मशहूर शायर वसीम बरेलवी उर्दू शायरी के अत्यंत वरिष्ठ शायर हैं। यह ऐसा नाम है जो किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनका अंदाज़ जुदा है और सलीका तो माशाल्लाह, क्या कहने। यह शेर जिस आत्म सम्मान से भरा हुआ है, वह बिरला ही मिलता है –

 

खुद को मनवाने का मुझको भी हुनर आता है।

मैं वो कतरा हूँ, समंदर मेरे घर आता है।।”

 

सुहैल काकोरवी उर्दू शायरी के ‘लिविंग लिजेंड’ हैं। जब किसी भी मौजू पर वर्तमान शायरी और तेवर की बात हो रही है तो वह बात बगैर सुहैल काकोरवी की शायरी को शामिल किये बिना पूरी ही नहीं हो सकती है। सुहैल काकोरवी समंदर पर कुछ इस तरह से फ़रमाते हैं-

 

मौजें मेरे इरादों से खाती रहीं शिकस्त,

तूफ़ान समंदरों में हज़ारों उठा किये।”

 

एक शेर और –

 

मोहब्बत ने मुझे दी बेपनाही,

मैं क़तरा था, समंदर हो गया हूँ।”

 

और एक शेर यह भी –

 

हर दम है यह डर, डूब न जाये कहीं दुनिया,

इस वक़्त है तूफ़ान पे आफ़त का समंदर।”

 

जनाब तश्ना आज़मी उर्दू शायरी में एक बहुत लोकप्रिय व पसंदीदा शायर हैं। उनका तरन्नुम और शायरी का जादू उनके प्रशंसकों के सिर चढ़ कर बोलता है। वे जितना सुने जाते हैं, उतना ही पढ़े भी जाते हैं। आइये, समंदर पर उनकी बेबाक राय जानते हैं –

 

हमारी प्यास को कुछ बूँद और समंदर तक,

सुलगती रेत से जाना है, क्या किया जाये।”

 

और यह भी –

 

कश्ती डुबो के मेरी तमाशाइयों के साथ,

साहिल पे सिर पटकने समंदर भी आ गया।”

 

यह एक और –

 

“सर होता नहीं सिर्फ़ जहाजों से समंदर,

हिम्मत है अगर आप में, इक नाव बहुत है।”

 

नौजवान शायरों में जो शायर अपना मुक़ाम बना रहे हैं, उनमें एक नाम विवेक भटनागर का है। विवेक हिंदी की दुनिया से चल कर उर्दू शायरी की हसीन मंज़िल तक पहुँचे हैं और उन्होंने अपनी क्षमताओं से एक बारगी सबको चौंका ही दिया है। वे जो भी कहते हैं, वह जैसे उनके दिल से छन कर बाहर निकलता है इसलिये उसमें तासीर भी होती है, ज़ायका भी और खुशबू भी। अपने चाहने वालों के लिये समंदर पर उनके कुछ बहुत खूबसूरत शेर मुझसे शेयर किये हैं जो आपके हवाले हैं –

 

हम तो उम्मीद का दरिया हैं, यक़ीं है हमको,

मिलने आएगा किसी रोज़ समंदर हमसे।”

 

एक शेर यह भी –

 

“मुझको ख़बर थी, तुम हो मचलती हुई नदी,

फिर क्या हुआ कि मैं ही समंदर नहीं हुआ।”

 

और एक शेर यह भी  –

 

“उस समंदर की तिश्नगी देखो,

उसको नदियों का ख्वाब दिखता है।”

 

एवं यह शेर –

 

“समंदर तेरे दर पर आऊं कैसे

मैं पोखर हूं, कोई दरिया नहीं हूं।”

 

और एक शेर यह भी –

 

“दरिया है मीठा, समंदर है खारा,

इक देने वाला है, इक लेने वाला।”

 

और एक खूबसूरत शेर और –

 

“नदी के सूख जाने की खबर से,

समंदर बेतरह प्यासा हुआ है।”

 

देश के ह्रदय मध्यप्रदेश से ताल्लुक रखने वाले युवा शायर राज तिवारी जितने अच्छे गीतकार हैं, उतने ही शानदार शायर भी हैं। उनका समंदर पर एक खूबसूरत शेर देखिये –

 

“वही कल समंदर से होंगे मुख़ातिब,

रहा आज जिनसे त’अल्लुक़ नदी का।”

 

लखनऊ के बाशिंदे और दिल्ली में कार्यरत अरविंद ‘असर’ शायरी की दुनिया का एक जाना पहचाना नाम है। उनके कई दीवान भी मंज़र-ए-आम पर आ चुके हैं। वे क्या खूब कहते हैं –

 

“बद्दुआ ये किसी प्यासे की मुझे लगती है,

रख दिए जिसने समन्दर सभी खारे करके।”

 

और एक शेर यह भी –

 

“न जाने कब से हैं ठहरे हुए समन्दर  सब,

ठहर गई जो कहीं पर नदी तो क्या होगा।”

 

अमिताभ दीक्षित एक अलमस्त शख़्सियत का नाम है। उनसे होकर जो भी गुज़रता है, खास हो जाता है, चाहे वह संगीत हो, चित्रकला हो या साहित्य। आइये, उनके नज़रिये से समंदर को देखते हैं –

 

“रौशनी का ये समन्दर है कि यादों का हुज़ूम,

आसमां के सितारे है कि आँखें मेरी तन्हाई की।”

 

और एक शेर यह भी – 

 

“बदला हुआ सा आज ये मंज़र दिखाई दे।

सहरा के दरमियां जो  समन्दर दिखाई दे।।”

 

एक शेर यह भी –

 

“खामोश हुए लब और आँखों में समन्दर है।

खुद को हलाक़ करना शीशे का मुक़द्दर है।।”

 

और उन्हीं की एक नज़्म का यह हिस्सा –

 

“किसी और का नहीं मेरा ही ये ज़नाज़ा है,

तेरी आँखों से जिसे मैंने अभी- अभी देखा,

मेरे बालों में तेरे हाथ का छोटा सा सफ़र,

तेरे चेहरे पे मेरी उँगलियों के सर्द निशां,

मेरी आँखों में तेरे आँसुओं की दो बूँदें,

तेरी आँखों में मेरी याद का समन्दर सा।”

 

मंजुल मयंक मिश्र का नाम शायरी की दुनिया में तेज़ी से उभर रहा है। वे तरन्नुम के शायर हैं और उनमें मंच लूट लेने का हुनर हेे। वे चीज़ों को अपने विशिष्ट अंदाज़ में परखते हैं। आइये, उनकी नज़रों से भी समंदर को देखते हैं –

 

पौना हिस्सा दुनिया का है जिस पर राज तुम्हारा है।

पर   इंसानों  की  तू  प्यास  बुझाने  में  नाकारा  है।

कितनी  मीठी नदियाँ दम आगोश में तेरी तोड़ रहीं,

अरे  समंदर, ये  उनकी  बद्दुआ  है, जो  तू खारा है।

 

समंदर पर बहुत कुछ लिखा गया लेकिन समंदर तो समंदर ही है। पता नहीं कितने राज़ उसके सीने में गहरे से दफ़न हैं। इसे सदियों से समझने की कोशिश की जा रही है लेकिन इसे समझने में अभी कई सदियाँ और लगेंगी। यह एक ऐसा विषय है जिस पर बार-बार कलम उठाने के बाद भी हर बार यही लगेगा कि कुछ बाहर छूट गया है। आखिर में, कुछ शेर मेरे भी समंदर के विराट व्यक्तित्व के नाम –

 

हज़ारों बस्तियां डूबी हैं मुझमें,

मेरे अंदर समंदर बोलता है।”

 

और एक शेर यह भी –

 

कलेजे से लिपट वह आँसुओं से,

मेरे दिल को समंदर कर गया है।”

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